अगर आप सार्वजनिक स्थल पर अपनी प्रेमिका/ पत्नी को किस करते है, तो आईपीसी की धारा 294 के तहत दंडनीय है।
परंतु, मनोरंजन के नाम पर फिल्मों/ टीवी चैनलो द्वारा सार्वजनिक स्थलों व करोड़ों घरों में अश्लीलता एवं नग्नता परोसना संविधान के अनुच्छेद 19 का मौलिक अधिकार है।
टीवी एवं मोबाइल के माध्यम से घरों में पोर्नोग्राफी की घुसपैठ बहुत खतरनाक है, महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध में पोर्नोग्राफी की मुख्य भूमिका रही है।
प्रिंटेड सामग्री, फिल्म व टीवी में नग्नता रोकने के लिए बनाए गए पुराने कानून व सेंसर बोर्ड इस डिजिटल दानव के आगे बौने साबित हो रहे है।
इंटरनेट की इस दुनिया में सरकारी अधिकारी भी उलझन में हैं, इसी का फायदा उठाकार कुछ लोग पोर्नोग्राफी के धंधे से ताबड़तोड़ कमाई कर रहें है।
पोर्नोग्राफी की लॉबी बचाव में कह रही है कि नग्नता देखना या दिखाना संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत हमारा मौलिक अधिकार है, यह धारणा पूरी तरह गलत है।
पोनोग्राफी को सरकार कानूनी दायरे में ला सकती हैं, क्योंकि ये तो हैवानियत है।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस वेंकटचलैया ने सन 1995 में खोडे डिस्टलरीज केस के फैसले में कहा था कि पोर्नोग्राफी जैसे आपराधिक व्यापार संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत किसी का मौलिक अधिकार नहीं हो सकता।